Friday, 22 March 2013

पहचान

पहचान

तुम्हारी ख्वाहिश में हमने जो ख्वाब बुने
उनमें एक आंच थी, हम जलते रहे।
खुद को जाना न खुदाई समझी
तुम्हरी जुस्तजू में बेसाख्ता चलते रहे॥

किसको मालूम था मंजिल का पता
कौन जानता था राह के मोड़ों को
हम तो बस चल पड़े तो चलते रहे
तेरी तस्वीर रख के नजरों में।

तुझको सोचा है, जब भी याद किया
दिल के किसी कोने में इक टीस उठी।
तू जहां होगी शायद खुश होगी
मैं यहां हूं, ये दुआ करता हूं॥

हम मिले एक बार, फ़िर मिलते रहे
जाने कितने दफ़े सरगोशियां कीं।
ऐ मेरे हमराज, मुझे इतना बता
तेरा मुझसे ओ मेरा तुझसे रिश्ता क्या है॥

तुझको देखा न सुना, सिर्फ़ एहसास है तूं
मेरी इस रुह के लिए इक सांस है तूं
तेरी इस जुस्तजू में हम तो जिए जाएंगे
कितनी ही दूर सही, दिल के मेरे पास है तूं॥

ऐ खुदा तुझसे मिलुंगा जो कभी, पूछुंगा
मुझमें कुछ तुमने तो देखा होगा।
दर्द इतना जो दिया, तनहाई दी
उसको तूने सुकूं दिया होगा॥

तेरी दानिशमंदी पे है मुझको भरोसा लेकिन
क्या वो खुश है तेरी इस निस्बत से?
हम इंतजार करेंगे भले कयामत तक
क्या तूं खुश होगा उस कयामत से??

- सुधांशु
03/22/2013


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